Sunday, November 24, 2013

ग़ज़ल

दिल तो न दे सके तुम गम ही दे जाते,
ख़्वाबों में आने की आदत कम ही दे जाते।

वो पल लौटा दो जो तुमने हमसे लिए,
जी लेते फिर गर तुम हमको हम ही दे जाते।

यकीं, तुम्हे नहीं मोहब्बत हमसे मगर,
पल भर के लिए ही सही भरम ही दे जाते।

कल की वादियों में तुमने साँसे ली है।
आज की फ़िज़ा में जीने का दम ही दे जाते।

कैसे करें तुझ पर ऐतबार अब हम,
टूटे हुए वादों को तुम कफ़न ही दे जाते।

Friday, November 15, 2013

ग़ज़ल

हर ख्वाइश का आसमान में बसर नहीं होता
मर्ज़ रह जाते हैं दवाओं का असर नहीं होता

वो साथ चलते नहीं कि हाथ छुड़ा लेते हैं ऐसे,
मुसाफिर जो ज़िन्दगी का हमसफ़र नहीं होता।

पूछते हैं वो हम मयखाने के कायल क्यों है?
भंवरों का फूलों पे मंडराना किधर नहीं होता।

जी रहे हैं कबसे तेरे वादों को सहारे हम,
मुक़र्रर हो मौत तो कोई गम इधर नहीं होता।

अब आई  है तो ये लम्बी ठहर के ही जाएगी
शब-ए-ज़िन्दगी का सफ़र मुख़्तसर नहीं होता।

Sunday, September 1, 2013

मैं अपना आशियाना पीछे छोड़ आया हूँ।

अपने अरमानों की टोली के पीछे,
खुशियों की खाली झोली के नीचे,
जाने मैं कितने दिल तोड़ आया हूँ।
मैं अपना आशियाना पीछे छोड़ आया हूँ।

कोई कहता है कि मैं पत्थर निष्ठुर हूँ।
छोटी-छोटी खुशियों से अभी दूर हूँ।
घने काले बादलों को छत बना बेठा हूँ।
सीली हुई दीवारों पे रंग लगवा ऐठा हूँ।

दिल है पर मोहब्बत से सरोकार नहीं है।
अरमानों में मेरे अब कहीं प्यार नहीं है।
सितारों की चाह के सरताज बन बेठे हैं।
अपनी ही ख्वाइशों के मोहताज बन बेठे हैं।

कुछ रूह है जो मुझे अभी भी याद करती हैं।
मेरे घर वापस आने की फ़रियाद करती है।
पर घर जाते रास्ते को खुदी मोड़ आया हूँ।
मैं अपना आशियाना पीछे छोड़ आया हूँ।

Monday, July 22, 2013

कह चले हम अलविदा

वो शामें वो रातों को,
सहमी सी हर बातो को,
गैर हर जज्बातों को,
कह चले हम अलविदा।

जलती हुई धूप आँखों को,
पेड़ की गिरती शाखों को,
सुखी पड़ी बरसातों को,
कह चले हम अलविदा।

वो डूबती तैरती नाँव को,
रेत में बसे पक्के गाँव को,
धूप से सनी हर छाँव को,
कह चले हम अलविदा।

वो कसमें झूठे वादों को,
बूंदों से छोटे हर नातों को,
बेबस करते हालातों को,
कह चले हम अलविदा।

Saturday, July 6, 2013

खुशनुमाह ख्वाब

जब भी तुम्हे मैं अपने घर की छत से देखता हूँ
तो मानो मेरी ज़िन्दगी खुश्नुमाह ख्वाब बन जाती है।

जब तुम अपने जुल्फों को उँगलियों से सहलाती हो
तो मानो सारे बादलों में बिजली सी कड़क जाती है।

जब तुम अपने माथे पे छोटी गोल बिंदी लगाती हो
तो मानो चाँद की चांदनी भी कुछ ज्यादा हो जाती है।

जब तुम अपने होठों को दाँतों के बीच दबाती हो
तो मानो फूलों की डालियाँ हवा में लहरा जाती है।

जब तुम अपनी पलकें उठाकर नज़र घुमाती हो
तो मानो समंदर की शांत लेहेरें तूफ़ान बन जाती है।

जब तुम अपने हाथों के कंगन को खनखाती हो
तो मानो सारे जहाँ में शेहनाई बज जाती है।

जब तुम अपनी नज़रें उठाकर मुझे देखती हो
तो मानो दिल की धड़कने अचानक थम जाती है।

काश तुम ख्वाब ही होती हकीकत कभी न बन पाती
तो ख्वाब ज़िन्दगी होती ज़िन्दगी ख्वाब बन जाती है।

ग़ज़ल - 06/07/2013

शाम  होने को है और तुम हो मेरे करीब,
इतनी तो न थी ये  ज़िन्दगी खुशनसीब।

अब रात भी होगी तो तेरे शबाब में डूबी।
खो जाऊंगा आगोश में बनके तेरा हबीब।

तोड़ चूका हूँ दुनिया से हर नाता मैं,
अब तू ही मेरा यार है तू ही मेरा रकीब।

सलीकों में जीते जीते सलीके से मर जाते।
तुम जो मिले हो तो मिली है जीने की तरकीब।

क्या था 'लक्ष्य' तेरे बिना मुझे न मालूम।
आज मैं जिंदा हूँ आज जागा है मेरा नसीब।

Friday, May 24, 2013

ग़ज़ल - 24/05/2013

इश्क में जिसे खुदा बना दिया,
उसी ने हमें बेवफ़ा बना दिया।

वो आये मय्यत में सज धज के,
जनाज़े को भी सेहरा बना दिया।

जो मिलते हैं दो-चार दिन गिन के,
उनका भी क्या तमाशा बना दिया।

मिलते हैं वो हमसे गैरों की तरह,
अपनों ने हमें पराया बना दिया।

कर-गुजरने के काबिल तो थे हम,
इश्क ने हमें निकम्मा बना दिया।

Thursday, March 21, 2013

ग़ज़ल

ये खुदा, दुनिया मुझसे कहती है।
मैं ज़मीन तू आसमां में रहती है।

तेरे इल्म में, मैं नहीं बसता पर
मेरे जहाँ में बस तू ही रहती है।

यकीं करे जो कभी दिखा ही नहीं,
मेरी खुदाई तो मेरी माँ ही कहती है।

न सच, न झूठ न ख्वाब है तू,
बुत में बसना फिर क्यों सहती है?

मैं शाहीन हूँ, परवाज़ करता हूँ,
मेरे दायरे में दुनिया रहती है।

Sunday, March 3, 2013

ग़ज़ल - 04/03/2013

धुंधली यादों की तस्वीर ढूँढ़ते हैं।
बंद दरवाज़ों की ज़ंजीर ढूँढ़ते हैं।

हर ख्वाब के टूटने के बाद वो,
चंद लकीरों में तकदीर ढूंढते हैं।

जल चुके हैं धर्म के नाम पर,
कहीं तो मिले वो कबीर ढूँढ़ते हैं।

तेरे छत से मेरा छत छोटा सही,
मेरे दिल से बड़ा अमीर ढूँढ़ते हैं।

मेरे खुदा पे शक तो मुझे भी है,
तभी राम से पहले रहीम ढूंढते हैं।

'लक्ष्य' तेरे नाम को खुद सिद्ध कर,
जीने का मकसद फ़कीर ढूंढते हैं।