Friday, November 15, 2013

ग़ज़ल

हर ख्वाइश का आसमान में बसर नहीं होता
मर्ज़ रह जाते हैं दवाओं का असर नहीं होता

वो साथ चलते नहीं कि हाथ छुड़ा लेते हैं ऐसे,
मुसाफिर जो ज़िन्दगी का हमसफ़र नहीं होता।

पूछते हैं वो हम मयखाने के कायल क्यों है?
भंवरों का फूलों पे मंडराना किधर नहीं होता।

जी रहे हैं कबसे तेरे वादों को सहारे हम,
मुक़र्रर हो मौत तो कोई गम इधर नहीं होता।

अब आई  है तो ये लम्बी ठहर के ही जाएगी
शब-ए-ज़िन्दगी का सफ़र मुख़्तसर नहीं होता।

No comments: