हर ख्वाइश का आसमान में बसर नहीं होता
मर्ज़ रह जाते हैं दवाओं का असर नहीं होता
वो साथ चलते नहीं कि हाथ छुड़ा लेते हैं ऐसे,
मुसाफिर जो ज़िन्दगी का हमसफ़र नहीं होता।
पूछते हैं वो हम मयखाने के कायल क्यों है?
भंवरों का फूलों पे मंडराना किधर नहीं होता।
जी रहे हैं कबसे तेरे वादों को सहारे हम,
मुक़र्रर हो मौत तो कोई गम इधर नहीं होता।
अब आई है तो ये लम्बी ठहर के ही जाएगी
शब-ए-ज़िन्दगी का सफ़र मुख़्तसर नहीं होता।
मर्ज़ रह जाते हैं दवाओं का असर नहीं होता
वो साथ चलते नहीं कि हाथ छुड़ा लेते हैं ऐसे,
मुसाफिर जो ज़िन्दगी का हमसफ़र नहीं होता।
पूछते हैं वो हम मयखाने के कायल क्यों है?
भंवरों का फूलों पे मंडराना किधर नहीं होता।
जी रहे हैं कबसे तेरे वादों को सहारे हम,
मुक़र्रर हो मौत तो कोई गम इधर नहीं होता।
अब आई है तो ये लम्बी ठहर के ही जाएगी
शब-ए-ज़िन्दगी का सफ़र मुख़्तसर नहीं होता।
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