Tuesday, May 3, 2011

One of my favourite lines with explaination

देखता हूँ की मैं क्या सोचूँ, सोचता हूँ की मैं क्या देखूं,
देखने से पहले ही जाने क्यों सोच बदल जाती है।
सोच की गहराई में खोज की गुंजाईश हो क्योंकि,
देखते ही देखते जाने क्यों खोज बदल जाती है।

Explaination:
This verse depicts the conflict between expectation (soch) and deserve (dekh).
We always have expectations and think that our expectation is what we deserve (First line)
but when we get something, we automatically raises our expectation, as in we are never dissatisfied with what we get.(second line)
We should not be disappointed with what we have or what we deserve and there has to be option of acceptance (third line)
because you never know when fate changes (fourth line)


Randoms..

इश्क की भरी महफ़िल में हम भी रुसवा हुए हैं,
जिसे चाहते थे बे-इन्तहा वो भी देखो बेवफा हुए हैं।
किस्से और कहानियों जो सुना-पढ़ा करते थे हम,
आज देखो उन्ही पन्नो के हज़ार टुकड़े हवा हुए हैं।

सोचकर जो चले थे रस्ते पर वो फ़साना बदल गया है,
कई सदियों के बदलने में ये ज़माना बदल गया है।
तन्हाई में जो छोड़कर चले गये हैं जाने क्या बात है,
बदलते ज़माने में ये न सोचना की ये दीवाना बदल गया है।

वो गुज़रे तो थे उस रास्ते पर जिस रास्ते पर मैं खड़ा था,
न देखा एक बार मुड़कर उसने, सनम संगदिल बड़ा था।
उनके एक दीदार के खातिर मैंने बार बार खुद को मारा,
मगर वो आये नहीं ज़ालिम, कबसे मेरा जनाजः वहीँ पड़ा था।

तेरे कसबे बना सकूं, वो दरख़्त ढूंढता हूँ मैं,
जो गुज़रे तेरे संग, वो वक़्त ढूँढता हूँ मैं।

काश कोई पैमाना होता, जिस में होती इतनी शराब,
न रहते होश में हम, न लगती ये दुनिया खराब ।

क्या मिला क्या न मिला

कुछ होते हैं बदनसीब जिनेह क़िनारा न मिला,
मुझे साहिल तो मिला पर कोई सहारा न मिला।
वो सजी तो थी महफ़िल कई चाँद से मगर,
ढूँढा किये जिसे हम रात भर वो हमारा न मिला।

तख़्त पर बेठे हुए देखा किया सारा जहाँ,
ग़मों की रौशनी में खुशिओं का नज़ारा न मिला।

याद है वो ठिकाना जहाँ मिले थे हम पहली बार,
अभी भी राह तख्ते हैं मगर वो मौका दुबारा न मिला।

क्या बिसात मेरी जो उठाऊँ सर तेरे आगे,
वो कयामत का दिन था पर शरारह न मिला।

वो कहते हैं की हम काफ़िर है तो पूछते है,
मेरे जनाजः पर क्यों दीदार तुम्हारा न मिला।

बड़ा तड़पे हैं तुझे अपना बनाने की चाहत में,
यादों की तनाहिओं में अब गुज़ारा न मिला।