Sunday, January 19, 2014

ग़ज़ल

खुद को न इतना बेकरार कीजिये
इश्क है तो फिर इज़हार कीजिये।

कुछ गम तो कुछ खुशियाँ है इसमें
खुदा पे न सही खुद पे ऐतबार कीजिये।

वो चाँद की चांदनी तुमसे दूर नहीं है
छटेंगे बादल थोड़ा इंतज़ार कीजिये।

इश्क़ में बेखुदी लाज़मी है मगर,
एक बार तो ज़िन्दगी में प्यार कीजिये।

और खुदा क्या मांगू ज़िन्दगी में अपने,
तू बस एक है चाहे दुआ हज़ार कीजिए।

Sunday, January 5, 2014

ग़ज़ल

दर्द से दिल को जब मोहब्बत होने लगे
मयकदों में जाने की तब ज़रुरत होने लगे।

लाख चाहे पर नज़र उससे हठती ही नहीं,
वो छलकती है जब तब क़यामत होने लगे।

दायर-इ-चश्म में वो कभी आते ही नहीं
शब-इ-गम में जाने कब मस्सरत होने लगे।

इब्न-इ-खुद न सही, मैं काफिर ही सही
बुत में बसे खुदा की जब वकालत होने लगे।

हर दर पर उसके, मिले जब रुसवाई तुझे
मयकदों के वजिदों में तब शराफत होने लगे।

ग़ज़ल

हमारी मोहब्बत में वो हमसे बेवफा हो बेठे
हमने दी खुदाई और वो खुद खुदा हो बेठे।

भूल गये वो हज़ारों खतों पे खून के छींटे
जो ख़त पे बस आंसू मिले तो खफा हो बेठे।

वो आते थे दयार में मेरे आफताब की तरह
शब के साय में वो चाँद की अदा हो बेठे।

उठाये हुए है मोहब्बत का क़र्ज़ सीने पे
क्या मालूम वो कब मिले और नफा हो बेठे।

आये थे दर पे तेरे कि फिर कोई मरासिम हो
मैं काफ़िर न था पर बे-आबरु दफा हो बेठे।