Wednesday, August 15, 2012

एक बार देश के लिए मरता हूँ।


वो वक़्त और ये वक़्त में कुछ अंतर है।
उनके लहू और हमारे रक्त में कुछ अंतर है।

वो जीये तो खुदा भी उनका कायल हुआ है।
हमारे जीने में तो खुदा बस घायल हुआ है।

क्या मायने निकालें हम अपने जीने का,
जब पत्थरों से भरा हो दिल अपना सीने का।

फिर भी एक फ़रियाद आज मैं खुद से करता हूँ।
खुद के लिए रोज़ मरे एक बार देश के लिए मरता हूँ।

Monday, August 13, 2012

दो खुदा

दो खुदाओं का कुछ हो रहा यूँ बसर,
इक बने जा रहे हैं तो इक मिटे जा रहें हैं ।

बनाया जिसने हमें वो तो मुफलिसी में है,
और हमारे बनाये हुए इबादत पा रहे हैं।

Friday, August 10, 2012

मेरा सनम

गुज़र रही है शाम जैसे बहते हैं आँखों से आंसू मेरे,
इस रात का इंतज़ार मुझे भी है और उन्हें भी
वो कहते हैं कि नहीं आयेंगे मेरा सनम मेरे दीदार के लिए,
इस बात का ऐतबार मुझे भी है और उन्हें भी

Tu ...

तुझे देखूं तो मेरी आँखों में नूर आता है ,
सच है कि ज़िन्दगी में खुदा ज़रूर आता है।

तुम्हारी किताब

जब भी वो तुम्हारी किताब नज़र आती है,
आँखों के कोने अचानक ही भीग जाते हैं !

वो सुबह की लाली में, जब पेड़ के नीचे,
तुम जुल्फों से खेलती कुछ लिखा करती थी !

अपने जज्बातों को नीले अक्षरों से कहकर,
कुछ नज्मों को होठों से गुनगुनाया करती थी !

वो किताब के पीले पन्नो से, आज भी
उन महकती नज्मों की सौंधी खुशबू आती है !

जैसे वो खींच रहे हो अपनी ओर मुझे,
ले जाने फिर से तुम्हारे जुल्फों के आगोश  में !

उन्ही पन्नो के बीच में एक मोर का पंख भी है,
आज भी वो अपनी कहानी बयान कर रहा है !

सिकुड़ने के लिए अभी वो राज़ी नहीं है,
जैसे उसने तुम्हे जिंदा रखने की कसम खाई है !

अब उन अक्षरों के मेलों में ढूंढता हूँ मैं तुम्हे,
पर भीगी हुई आँखों से वो धुंधले नज़र आते हैं !

और कुछ तो पानी के टपकने से धुल जाते हैं !
हाँ, पर तुम्हारी नज्मों की गुनगुनाहट सुनाई देती है !