Saturday, October 22, 2011

ग़ज़ल - 23/10/2011

जो दिल से मेरे निकले वो आवाज़ कहाँ से लाऊँ,
जो दिल तक तेरे पहुंचे वो जज़्बात कहाँ से लाऊँ।

न कुछ था मेरा तेरे पहले, न कुछ होगा मेरा तेरे बाद,
जो जी सकूं कुछ दम-भर वो एहसास कहाँ से लाऊँ।

ये गमशुदा दुनिया में जो मिल सके वो नसीब मेरा,
जो मांग सकूं तेरी खातिर, वो फ़रियाद कहाँ से लाऊँ।

बे-सबब मिली रुसवाई भी लगती कुछ कम मुझे,
जो जला सके मेरे अक्स को, वो आग कहाँ से लाऊं।

खुदा भी जानता है कि नहीं उसके पास मेरी ज़िन्दगी,
जो देदूं उसे ये जिंदगानी, वो इशफाक कहाँ से लाऊं।

ये काफिरों की बस्ती में क्यों घुट-घुट जी रहा मैं,
जो उड़ सके आसमां में, वो परवाज़ कहाँ से लाऊं।

Tuesday, October 18, 2011

भिखरे हुए तर्ज़

चलते-चलते जो दूर निकल आए, अब रुकने का मन करता है।
वो पीछे छूटी हुई गलियों से, फिर गुजरने का मन करता है।
हर बार जो मुड़कर देखा तो, यादों के गुछे लटके दिखते हैं।
हर बार की तरह इस बार भी, वो गुछे चखने का मन करता है।

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आँखों से आंसू जो निकले तो इस बार रुक पाएंगे,
पर है यकीन ये भी कि, दिल से मेरे होठ मुस्करायेंगे।
यादों की महफ़िल में आज फिर यारों का साथ होगा,
और मनेगा जश्न जब दिलों के जाम आपस में टकरायेंगे।

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मत भूलो खुदगर्ज़ी के आलम में जीने वालों,
जनाज़े के लिए चार कंधे कहाँ से जुटाओगे?

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हर सजदे में कांटे चुबे, असर हो कोई दुआ,
चलो अब मान लेते हैं, खुद को हम अपना खुदा।

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Monday, October 10, 2011

आइना

जब भी मेरा दिल तेरी बेवफाई का राज़ खोलता है,
मेरा आइना भी मुझसे कुछ तो झूठ बोलता है।

जो चेहरे को मेरे खोखली हंसी के मौखोटे चढ़ जाते हैं,
दिल की खलिश को वो आँखों के दरारों से तोलता है।

कब तक मेरा अक्स भी मेरे अश्क में धुल जाएगा,
देखे मेरे आंसू भी मेरे गम को कब तक घोलता है।

दो मुसाफिरों की तरह तो हम न मिले थे कभी,
फिर क्यों मेरा साथ, बस तेरे हाथ को टटोलता है।

Tribute to Jagjit Singh

हर पहली मोहब्बत की आवाज़ है तू,
हर दर्द भरे दिल का एहसास है तू ,
जो कह नहीं सके लब्ज़ वो फ़रियाद है तू ,
दूर जाकर भी, हमारे दिल के पास है तू