Thursday, September 23, 2010

क्या देखूं मैं ?

क्यों बनायीं धरा पर इतनी दौलत की,
हर एक को सिर्फ दौलत ही दिखती है।
और क्यों बसाया सीने में दिल का घराना,
जब इस दुनिया में मोहब्बत भी बिकती है।

सोचा चलेंगे साथ कुछ पल तो साथी बनेगे,
इस रकीबों की दुनिया में दोस्ती नहीं मिलती है।

ख़्वाबों को सच करने का ख्वाब हम है पालें,
हकीकत का जाम पिया तो आँखों से नींद खुलती है।

दरख्तों को काटकर अपना महल तो बनवाया,
पर झरोको से अब ठंडी हवा नहीं गुजरती है।

रहेने दे खुदा, तेरी खुदाई भी हमने देखी है,
इंसान बनाकर मालूम हुआ, तुझमें भी कमी दिखती है।

Wednesday, September 1, 2010

यादों की उड़ान

हर पल पलकों से पल गुज़रते रहे, और बनते रहे आंसू मोती।
बादलों में उलझे रहे हम पक्षी, टेड़ी-मेडी उड़ान होती।
न सुध होता उठने का कभी, न सोने का कभी होता समय,
बातों में जो गुजरे वक़्त, संग हमारे रात भी न सोती।


लेटे लेटे रेतों पर हम, देखा किये खुला आसमान,
लहरों ने कभी दी दस्तक, कभी हवाओं ने बदली तान।
चाँद भी निकला किये, चाहे हो अमावस की रात,
तारें भी करे झगडा बड़ा, देखना है जो हमारी शान।

रूठे जो आपस में कभी, तो होले से मना लिया करते थे
रंजिश की कोई गुंजाईश न बचे, इस लिए गले लगा लिया करते थे।
थामे हाथ संग हम चले, हर मस्ती शरारत सब संग किए,
जिस की भी हो गलती चाहे, मिल कर सज़ा खा लिया करते थे।

जब भी बारिश में भीगे हम, तो आसमान ने भी जश्न मनाया है,
हर ख़ुशी हर गम की यादों को दोनों हाथों से दिल में छुपाया है।
दिल के बिछोने पर यारों, यादों की सलवटें को छोड़ा है,
जो नींद न आये रोतों को, तो यादों को ही दुल्हन बनाया है।

चाँद ने भी माँगा होगा कहीं से एक झोला सलोना,
सोचा समेट लूं सारी यादें, पर था उसका झोला छोटा।
ये यादें तो आज़ाद पंछी है, उड़ चला खुले गगन में,
उड़ चलो तुम भी इनके संग, क्यों है मन को तुमने रोका।