Saturday, November 22, 2014

माँ ....

आसमां भी मिला तारे भी मिले,
माँ के कदमों में सारे ही मिले।

गोद में तेरी सर रख सोना ज़रा,
सुकूं मिला खुल्द के नज़ारे भी मिले।

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दुनिया मुझे अक्सर, रुसवा करती है।
एक माँ ही है जो दुलार सदा करती है।

उसकी आँखों में मैं नूर-ऐ-चश्म सही,
उसका यकीन ही उसे खुदा करती है।

उसके आँचल में मैंने मेरा आसमां पाया,
मैं सोता हूँ तो बस वो सजदा करती है।

दो वक़्त की रोटी में कितना भटका मैं,
पेट भरा जब एक कोर माँ अदा करती है।

अकेला हूँ तो ये जहाँ काफिर लगता है,
माँ हो साथ तो ज़िन्दगी भी वफ़ा करती है।

ग़ज़ल

देखो वो हमारी किस्मत बदलने चले हैं।
ख़ुदा से ख़ुदा को अलग करने चले हैं।

ये सियासत नहीं जो रास आ जाएगी।
ये दिल की लगी है तभी जलने चले हैं।

तुम काफ़िर हो तुम्हे किस बात का डर,
हम मोहब्बत में समंदर निगलने चले हैं।

नकाब उतारकर कभी आइना भी देख,
है बादाख्वार जो वाइज बनने चले हैं।

तुम क्या सिखाओगे जीने का हुनर हमें,
हमें मरने का शौक है सो मरने चले हैं।