रोटी का नहीं, चाँद का टुकड़ा खिलाया है।
माँ ने आज फिर लोरी गाकर सुलाया है।
कोरी है थाली, न तो रोटी है, न साग है।
लगता है चूल्हे में आज फिर न आग है।
हाथों से पेट थपथपा भूख को मिटाया है।
माँ ने आज फिर लोरी गाकर सुलाया है।
सूखी धरा, कुएं का पानी लाल हो गया।
कबसे न बरसे मेघ तो आकाल हो गया।
पानी नहीं तो ठंडी चांदनी ही पिलाया है।
माँ ने आज फिर लोरी गाकर सुलाया है।
लिया क़र्ज़ झूले का, पर झूला न आया।
दहकती ज़मीन पर सोना किसे है भाया।
नींद नहीं आये तो आँचल में झुलाया है।
माँ ने आज फिर लोरी गाकर सुलाया है।
बीके हैं बर्तन, सारा सामान बिक गया।
बची है छत, बाकी आसमान बिक गया।
मेरे सपनों में ही अपना जहाँ बसाया है।
माँ ने आज फिर लोरी गाकर सुलाया है।
इस बेबसी में क्या-क्या न कर जाता मैं।
जो माँ न होती तो पल में मर जाता मैं।
खुदा ने उसे ज़मीन का खुदा बनाया है।
माँ ने आज फिर लोरी गाकर सुलाया है।