Monday, July 22, 2013

कह चले हम अलविदा

वो शामें वो रातों को,
सहमी सी हर बातो को,
गैर हर जज्बातों को,
कह चले हम अलविदा।

जलती हुई धूप आँखों को,
पेड़ की गिरती शाखों को,
सुखी पड़ी बरसातों को,
कह चले हम अलविदा।

वो डूबती तैरती नाँव को,
रेत में बसे पक्के गाँव को,
धूप से सनी हर छाँव को,
कह चले हम अलविदा।

वो कसमें झूठे वादों को,
बूंदों से छोटे हर नातों को,
बेबस करते हालातों को,
कह चले हम अलविदा।

Saturday, July 6, 2013

खुशनुमाह ख्वाब

जब भी तुम्हे मैं अपने घर की छत से देखता हूँ
तो मानो मेरी ज़िन्दगी खुश्नुमाह ख्वाब बन जाती है।

जब तुम अपने जुल्फों को उँगलियों से सहलाती हो
तो मानो सारे बादलों में बिजली सी कड़क जाती है।

जब तुम अपने माथे पे छोटी गोल बिंदी लगाती हो
तो मानो चाँद की चांदनी भी कुछ ज्यादा हो जाती है।

जब तुम अपने होठों को दाँतों के बीच दबाती हो
तो मानो फूलों की डालियाँ हवा में लहरा जाती है।

जब तुम अपनी पलकें उठाकर नज़र घुमाती हो
तो मानो समंदर की शांत लेहेरें तूफ़ान बन जाती है।

जब तुम अपने हाथों के कंगन को खनखाती हो
तो मानो सारे जहाँ में शेहनाई बज जाती है।

जब तुम अपनी नज़रें उठाकर मुझे देखती हो
तो मानो दिल की धड़कने अचानक थम जाती है।

काश तुम ख्वाब ही होती हकीकत कभी न बन पाती
तो ख्वाब ज़िन्दगी होती ज़िन्दगी ख्वाब बन जाती है।

ग़ज़ल - 06/07/2013

शाम  होने को है और तुम हो मेरे करीब,
इतनी तो न थी ये  ज़िन्दगी खुशनसीब।

अब रात भी होगी तो तेरे शबाब में डूबी।
खो जाऊंगा आगोश में बनके तेरा हबीब।

तोड़ चूका हूँ दुनिया से हर नाता मैं,
अब तू ही मेरा यार है तू ही मेरा रकीब।

सलीकों में जीते जीते सलीके से मर जाते।
तुम जो मिले हो तो मिली है जीने की तरकीब।

क्या था 'लक्ष्य' तेरे बिना मुझे न मालूम।
आज मैं जिंदा हूँ आज जागा है मेरा नसीब।