Saturday, July 6, 2013

ग़ज़ल - 06/07/2013

शाम  होने को है और तुम हो मेरे करीब,
इतनी तो न थी ये  ज़िन्दगी खुशनसीब।

अब रात भी होगी तो तेरे शबाब में डूबी।
खो जाऊंगा आगोश में बनके तेरा हबीब।

तोड़ चूका हूँ दुनिया से हर नाता मैं,
अब तू ही मेरा यार है तू ही मेरा रकीब।

सलीकों में जीते जीते सलीके से मर जाते।
तुम जो मिले हो तो मिली है जीने की तरकीब।

क्या था 'लक्ष्य' तेरे बिना मुझे न मालूम।
आज मैं जिंदा हूँ आज जागा है मेरा नसीब।

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