बादलों में उलझे रहे हम पक्षी, टेड़ी-मेडी उड़ान होती।
न सुध होता उठने का कभी, न सोने का कभी होता समय,
बातों में जो गुजरे वक़्त, संग हमारे रात भी न सोती।
लेटे लेटे रेतों पर हम, देखा किये खुला आसमान,
लहरों ने कभी दी दस्तक, कभी हवाओं ने बदली तान।
चाँद भी निकला किये, चाहे हो अमावस की रात,
तारें भी करे झगडा बड़ा, देखना है जो हमारी शान।
रूठे जो आपस में कभी, तो होले से मना लिया करते थे
रंजिश की कोई गुंजाईश न बचे, इस लिए गले लगा लिया करते थे।
थामे हाथ संग हम चले, हर मस्ती शरारत सब संग किए,
जिस की भी हो गलती चाहे, मिल कर सज़ा खा लिया करते थे।
जब भी बारिश में भीगे हम, तो आसमान ने भी जश्न मनाया है,
हर ख़ुशी हर गम की यादों को दोनों हाथों से दिल में छुपाया है।
दिल के बिछोने पर यारों, यादों की सलवटें को छोड़ा है,
जो नींद न आये रोतों को, तो यादों को ही दुल्हन बनाया है।
चाँद ने भी माँगा होगा कहीं से एक झोला सलोना,
सोचा समेट लूं सारी यादें, पर था उसका झोला छोटा।
ये यादें तो आज़ाद पंछी है, उड़ चला खुले गगन में,
उड़ चलो तुम भी इनके संग, क्यों है मन को तुमने रोका।
6 comments:
wow!!!
i liked 3rd para the most... very true
nice as always......
nice one... keep writing...
thnx yaaron!!
nice to see u bck in form :)
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