Thursday, September 23, 2010

क्या देखूं मैं ?

क्यों बनायीं धरा पर इतनी दौलत की,
हर एक को सिर्फ दौलत ही दिखती है।
और क्यों बसाया सीने में दिल का घराना,
जब इस दुनिया में मोहब्बत भी बिकती है।

सोचा चलेंगे साथ कुछ पल तो साथी बनेगे,
इस रकीबों की दुनिया में दोस्ती नहीं मिलती है।

ख़्वाबों को सच करने का ख्वाब हम है पालें,
हकीकत का जाम पिया तो आँखों से नींद खुलती है।

दरख्तों को काटकर अपना महल तो बनवाया,
पर झरोको से अब ठंडी हवा नहीं गुजरती है।

रहेने दे खुदा, तेरी खुदाई भी हमने देखी है,
इंसान बनाकर मालूम हुआ, तुझमें भी कमी दिखती है।

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