Tuesday, May 3, 2011

क्या मिला क्या न मिला

कुछ होते हैं बदनसीब जिनेह क़िनारा न मिला,
मुझे साहिल तो मिला पर कोई सहारा न मिला।
वो सजी तो थी महफ़िल कई चाँद से मगर,
ढूँढा किये जिसे हम रात भर वो हमारा न मिला।

तख़्त पर बेठे हुए देखा किया सारा जहाँ,
ग़मों की रौशनी में खुशिओं का नज़ारा न मिला।

याद है वो ठिकाना जहाँ मिले थे हम पहली बार,
अभी भी राह तख्ते हैं मगर वो मौका दुबारा न मिला।

क्या बिसात मेरी जो उठाऊँ सर तेरे आगे,
वो कयामत का दिन था पर शरारह न मिला।

वो कहते हैं की हम काफ़िर है तो पूछते है,
मेरे जनाजः पर क्यों दीदार तुम्हारा न मिला।

बड़ा तड़पे हैं तुझे अपना बनाने की चाहत में,
यादों की तनाहिओं में अब गुज़ारा न मिला।

No comments: