Thursday, August 11, 2011

वो आदत थी तुम्हारी ..

वो आदत थी तुम्हारी सनम जो तुम हमें रुसवा किया करे,
ये आदत है हमारी सनम जो हम तुमसे रुसवा हुआ करे।

वो नूर था तुम्हारा जिसे देख हम सदा जिया करे,
ये अश्क है हमारे जिनको तुमने सदा अनदेखा करे।

वो ग़ज़ल थी लब्ज़ो में तुम्हारी जो हम सदा सुना करे,
ये गम हैं हमारे जो तुम्हारे कानों तक न पहुंचा करे ।

वो लहरें थी तुम्हारे केशों की लटे जिसमें हम डूबा करे,
ये सेलाब है हमारे प्यार का जो छुहे बिना तुमसे गुजरा करे।

वो गुज़रे पल थे तुम्हारे जिनकी यादें हमारी दुनिया बना करे,
ये ज़िन्दगी है हमारी जो तेरे सागर में बस बुलबुले बना करे।

वो शिकवे थे तुम्हारे जो हमारी ज़िन्दगी के दस्तूर हुआ करे,
ये दर्द है हमारे जो तुम्हारी ज़िन्दगी से बहुत दूर हुआ करे।

वो रूह थी तुम्हारी जिसे छुने की आस में हम दर-बदर भटका करे,
ये दिल्लगी है हमारी जिस से बचकर तुम मुस्कराएं चला करे।

वो वादे थे तुम्हारे जिसे हमने खुदा का हुकुम समझा किया करे,
ये खुदा है हमारा जिसे तुमने बुद समझ कर ठुकरा दिया करे।

वो टूटी पायल थी तुम्हारी जिसे हमने हमेशा महफूज़ रखा करे,
ये दौलत है हमारी जिसको लुटते हमने सरे-आम देखा करे।

वो लबों की हंसी तुम्हारी जो साया बन संग मेरे घुमा करे,
ये ख़ुशी है हमारी जो तेरे साये में अपना साया ढूँढा करे।

वो मर्ज़ी थी तुम्हारी जो तुमने हमसे दूर जाना तय किया करे,
ये मर्ज़ी है हमारी की हमने तुम्हारा इंतज़ार करना तय किया करे।

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