Thursday, August 25, 2011

मन का चोर

एक चोर था मेरे मन में,
एक चोर था तेरे मन में ।

कुछ थी न तुझको खबर,
कुछ मैं भी था बेखबर ।

पर एहसास था कहीं छुपा हुआ है ।
और दिखावों के बोझों में दबा हुआ है ।

वो आदत के जालों में घिरा हुआ है ।
वो मजबूरी के धागों में फिर हुआ है ।

कोई देता था दस्तक तो कई बार ,
पर सुनकर अनसुना करा हर बार ।

पर बहुत देर से एक आंधी आई है
जो खटखटा रही है दरवाज़ा कई बार।

लगता है अब न रुक पायेगा ये दरवाज़ा।
लगता है जल्द टूट जायेगा ये दरवाज़ा ।

कुछ तो होगा जो झिंझोड़ेगा मुझे,
कुछ तो होगी हलचल भी तुझे ।

फिर लगेगी सीने में जो आग ,
फिर जा निकालेंगे वो चोर भाग ।

फिर तू भी चैन से सो सकता है ।
फिर में भी चैन से सो सकता हूँ ।

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