एक चोर था मेरे मन में,
एक चोर था तेरे मन में ।
कुछ थी न तुझको खबर,
कुछ मैं भी था बेखबर ।
पर एहसास था कहीं छुपा हुआ है ।
और दिखावों के बोझों में दबा हुआ है ।
वो आदत के जालों में घिरा हुआ है ।
वो मजबूरी के धागों में फिर हुआ है ।
कोई देता था दस्तक तो कई बार ,
पर सुनकर अनसुना करा हर बार ।
पर बहुत देर से एक आंधी आई है
जो खटखटा रही है दरवाज़ा कई बार।
लगता है अब न रुक पायेगा ये दरवाज़ा।
लगता है जल्द टूट जायेगा ये दरवाज़ा ।
कुछ तो होगा जो झिंझोड़ेगा मुझे,
कुछ तो होगी हलचल भी तुझे ।
फिर लगेगी सीने में जो आग ,
फिर जा निकालेंगे वो चोर भाग ।
फिर तू भी चैन से सो सकता है ।
फिर में भी चैन से सो सकता हूँ ।
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