जब लगे कुछ रहा नहीं तुम्हारा !
जो साथ था वो पीछे छूट गया है,
हातों से जैसे सब कुछ टूट गया है।
अब खाली हैं हाथ
और अकेली है ज़िन्दगी ।
कोई खम्बक्त ने चुरा लिया हो
ज़िन्दगी से तुम्हारी ज़िन्दगी ।
जब लगे विराना सा सारा जहाँ,
जी रहें हो अकेले और तनहा वहां।
जब लगे कि डूबे हैं
कोई गहेरे समंदर में।
खुद हि ढूँढ रहे हो
खुद हि को बवंडर में ।
जब लगे कि कोई आस न रही हो ।
मरने का डर भी कोसो दूर कहीं हो।
न कोई अपना हो,
न कोई हो पराया।
वक़्त करे बेवफाई,
छोड़े साथ भी साया।
तब एक बार खुले आसमान के नीचे,
दोनों बाहें फेलाए, अंखियों को मीचे,
एक बार उस खुदा को देखना।
तब लगेगा
ये दूर वादिओं से जो हवा चल रही है,
वो तुमसे गले लगने कि कोशिश कर रही है।
ये चिराग तुम्हें देखने के लिए जल रहा है।
ये बादल तुम में मिलने के लिए पिघल रहा है ।
ये शीतल चाँद भी है तुम्हारा ,
ये जलता सूरज भी है तुम्हारा,
ये तारों का झुण्ड भी है तुम्हारा ,
ये सबका खुदा भी है तुम्हारा,
तब लगेगा तुम्हें कि सब कुछ है तुम्हारा।
Saturday, November 19, 2011
Saturday, November 12, 2011
Some Couplets!
मालूम है मुझे तेरे बिन जीना मुश्किल,ये खुदा
पर कुछ देर के लिए ही सही मुझे अकेला छोड़ दे।
जो मेरे आंसू में बारिश की बूंदे है मिली,
लगा खुदा भी नहीं देख सका मुझे रोते हुए।
कब से बन्द रखी है आँखें जो आंसू न बह जाये,
ये खुदा, कैसे जुदा करे उसे जो तुने मुझे दिया है।
देखा दुनिया को पर उस खुदा को नहीं देख पाया,
कुछ तो वजह होगी जो उसने बक्शा हमें साया।
क्यों चुभते हैं कांटे जो तेरे पास आना चाहता हूँ ?
या ज़ख्म है फूलों के जो मैं न समझ पाता हूँ ?
पर कुछ देर के लिए ही सही मुझे अकेला छोड़ दे।
जो मेरे आंसू में बारिश की बूंदे है मिली,
लगा खुदा भी नहीं देख सका मुझे रोते हुए।
कब से बन्द रखी है आँखें जो आंसू न बह जाये,
ये खुदा, कैसे जुदा करे उसे जो तुने मुझे दिया है।
देखा दुनिया को पर उस खुदा को नहीं देख पाया,
कुछ तो वजह होगी जो उसने बक्शा हमें साया।
क्यों चुभते हैं कांटे जो तेरे पास आना चाहता हूँ ?
या ज़ख्म है फूलों के जो मैं न समझ पाता हूँ ?
Thursday, November 3, 2011
चलते-चलते
सोचा न था, चलते चलते इतनी दूर चले आयेंगे,
कि पेरों में पड़े छाले भी न छुपा पाएंगे ।
माना खुदा की रज़ा कुछ और थी मेरी खातिर,
अब जिद्द है अपनी किस्मत खुद लिख कर जायेंगे।
वही है पकड़ी राह, जिसे मेरे दिल ने है चाह,
ठानी है जो धुन अब वही धुन रमाएंगे।
चुभे चाहे कितने भी कांटे, अब पैर न सहलायेंगे,
अब कांटो से है मोहब्बत, फूलों को गले न लगायेंगे
पैरों में बेड़ियों की जो वकालत किया करते हैं,
सुनकर हमारी दलीलें अब वो सहम जायेंगे।
खुले आसमान में हम इस तरह पंख फेलायेंगे,
कि हमें देखते-देखते उनकी गर्दनें टूट जायेंगे ।
वो देते हैं रीति-रिवाज, परम्पराओं का हवाला,
वो अपने ही जंजीरों में बंद कर रह जायेंगे ।
हमें न फ़िक्र उन पशेमान खुदापरस्त लोगों की,
हम तो अपना हितिहास,अपना खुदा खुद बनायेंगे ।
Wednesday, November 2, 2011
क्या मिलेगा मेरे ज़ख्मों में तुम्हे!
क्यों कुरेदते हो नाखूनों से अपने,
क्या मिलेगा मेरे ज़ख्मों में तुम्हें!
यादों में तेरी जो में जल चूका हूँ,
क्या मिलेगा अब राखों में तुम्हे!
दिल का दर्द अब छिपता नहीं है,
क्या मिलेगा पर दिखाने में तुम्हें!
जो गुज़रे कई इम्तिहानों से हम,
क्या मिलेगा आज़माने में तुम्हें!
आए थे तेरे शहर में बसर करने,
दिखता खुदा न मेहमानों में तुम्हें!
रहगुज़र न सही बेघर ही सही,
जो ढूंढते हैं हम मेहखानों में तुम्हे!
क्या मिलेगा मेरे ज़ख्मों में तुम्हें!
यादों में तेरी जो में जल चूका हूँ,
क्या मिलेगा अब राखों में तुम्हे!
दिल का दर्द अब छिपता नहीं है,
क्या मिलेगा पर दिखाने में तुम्हें!
जो गुज़रे कई इम्तिहानों से हम,
क्या मिलेगा आज़माने में तुम्हें!
आए थे तेरे शहर में बसर करने,
दिखता खुदा न मेहमानों में तुम्हें!
रहगुज़र न सही बेघर ही सही,
जो ढूंढते हैं हम मेहखानों में तुम्हे!
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