Thursday, March 21, 2013

ग़ज़ल

ये खुदा, दुनिया मुझसे कहती है।
मैं ज़मीन तू आसमां में रहती है।

तेरे इल्म में, मैं नहीं बसता पर
मेरे जहाँ में बस तू ही रहती है।

यकीं करे जो कभी दिखा ही नहीं,
मेरी खुदाई तो मेरी माँ ही कहती है।

न सच, न झूठ न ख्वाब है तू,
बुत में बसना फिर क्यों सहती है?

मैं शाहीन हूँ, परवाज़ करता हूँ,
मेरे दायरे में दुनिया रहती है।

Sunday, March 3, 2013

ग़ज़ल - 04/03/2013

धुंधली यादों की तस्वीर ढूँढ़ते हैं।
बंद दरवाज़ों की ज़ंजीर ढूँढ़ते हैं।

हर ख्वाब के टूटने के बाद वो,
चंद लकीरों में तकदीर ढूंढते हैं।

जल चुके हैं धर्म के नाम पर,
कहीं तो मिले वो कबीर ढूँढ़ते हैं।

तेरे छत से मेरा छत छोटा सही,
मेरे दिल से बड़ा अमीर ढूँढ़ते हैं।

मेरे खुदा पे शक तो मुझे भी है,
तभी राम से पहले रहीम ढूंढते हैं।

'लक्ष्य' तेरे नाम को खुद सिद्ध कर,
जीने का मकसद फ़कीर ढूंढते हैं।