ये खुदा, दुनिया मुझसे कहती है।
मैं ज़मीन तू आसमां में रहती है।
तेरे इल्म में, मैं नहीं बसता पर
मेरे जहाँ में बस तू ही रहती है।
यकीं करे जो कभी दिखा ही नहीं,
मेरी खुदाई तो मेरी माँ ही कहती है।
न सच, न झूठ न ख्वाब है तू,
बुत में बसना फिर क्यों सहती है?
मैं शाहीन हूँ, परवाज़ करता हूँ,
मेरे दायरे में दुनिया रहती है।
मैं ज़मीन तू आसमां में रहती है।
तेरे इल्म में, मैं नहीं बसता पर
मेरे जहाँ में बस तू ही रहती है।
यकीं करे जो कभी दिखा ही नहीं,
मेरी खुदाई तो मेरी माँ ही कहती है।
न सच, न झूठ न ख्वाब है तू,
बुत में बसना फिर क्यों सहती है?
मैं शाहीन हूँ, परवाज़ करता हूँ,
मेरे दायरे में दुनिया रहती है।