Monday, July 14, 2014

शतरंज की बाजी

आज फिर लगी है शतरंज की बाज़ी,
एक तरफ मैं, तो  दूसरी ओर ज़िन्दगी।

काले मोहरे मेरे और उसके सफ़ेद हैं।
टक्कर का खेल काफी देर से चल रहा है।
ऊंट उसने मारे तो मैंने उसका हाथी
और दोनों के घोड़े तो मारे जा चुके हैं।

मैं अगली चाल सोच ही रहा था कि
ज़िन्दगी ने एक सवाल पूछ लिया।
ये तनहाई किस बला का नाम है?
मैं मुस्कराया और कुछ न कहा।

पर ज़िन्दगी चुप न बैठी और कहा
जानते हो, एक दिन चाँद को
धरती से मोहब्बत हो गई
और तब से वो धरती के
चक्कर लगाता रहता है।

न इल्म है उसे इस इश्क़ का
न खबर है क्या अंजाम होगा
बस तसल्ली है उसके दिल को
वो दूर तो है पर तन्हा नहीं है।

मैं फिर मुस्काया और कुछ न कहा।
पर जाने अंजाने ही समझ आ गया।
मैं फिर ज़िन्दगी की बातों में आ गया
मैं फिर शतरंज की बाजी हार गया। 

Sunday, July 13, 2014

माँ ने आज फिर लोरी गाकर सुलाया है

रोटी का नहीं, चाँद का टुकड़ा खिलाया है। 
माँ ने आज फिर लोरी गाकर सुलाया है। 

कोरी है थाली, न तो रोटी है, न साग है। 
लगता है चूल्हे में आज फिर न आग है।  
हाथों से पेट थपथपा भूख को मिटाया है। 
माँ ने आज फिर लोरी गाकर सुलाया है। 

सूखी धरा, कुएं का पानी लाल हो गया। 
कबसे न बरसे मेघ तो आकाल हो गया।  
पानी नहीं तो ठंडी चांदनी ही पिलाया है। 
माँ ने आज फिर लोरी गाकर सुलाया है। 

लिया क़र्ज़ झूले का, पर झूला न आया। 
दहकती ज़मीन पर सोना किसे है भाया। 
नींद नहीं आये तो आँचल में झुलाया है। 
माँ ने आज फिर लोरी गाकर सुलाया है। 

बीके हैं बर्तन, सारा सामान बिक गया। 
बची है छत, बाकी आसमान बिक गया। 
मेरे सपनों में ही अपना जहाँ बसाया है। 
माँ ने आज फिर लोरी गाकर सुलाया है। 

इस बेबसी में क्या-क्या न कर जाता मैं। 
जो माँ न होती तो पल में मर जाता मैं। 
खुदा ने उसे ज़मीन का खुदा बनाया है। 
माँ ने आज फिर लोरी गाकर सुलाया है।