Monday, July 14, 2014

शतरंज की बाजी

आज फिर लगी है शतरंज की बाज़ी,
एक तरफ मैं, तो  दूसरी ओर ज़िन्दगी।

काले मोहरे मेरे और उसके सफ़ेद हैं।
टक्कर का खेल काफी देर से चल रहा है।
ऊंट उसने मारे तो मैंने उसका हाथी
और दोनों के घोड़े तो मारे जा चुके हैं।

मैं अगली चाल सोच ही रहा था कि
ज़िन्दगी ने एक सवाल पूछ लिया।
ये तनहाई किस बला का नाम है?
मैं मुस्कराया और कुछ न कहा।

पर ज़िन्दगी चुप न बैठी और कहा
जानते हो, एक दिन चाँद को
धरती से मोहब्बत हो गई
और तब से वो धरती के
चक्कर लगाता रहता है।

न इल्म है उसे इस इश्क़ का
न खबर है क्या अंजाम होगा
बस तसल्ली है उसके दिल को
वो दूर तो है पर तन्हा नहीं है।

मैं फिर मुस्काया और कुछ न कहा।
पर जाने अंजाने ही समझ आ गया।
मैं फिर ज़िन्दगी की बातों में आ गया
मैं फिर शतरंज की बाजी हार गया। 

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