इश्क की भरी महफ़िल में हम भी रुसवा हुए हैं,
जिसे चाहते थे बे-इन्तहा वो भी देखो बेवफा हुए हैं।
किस्से और कहानियों जो सुना-पढ़ा करते थे हम,
आज देखो उन्ही पन्नो के हज़ार टुकड़े हवा हुए हैं।
सोचकर जो चले थे रस्ते पर वो फ़साना बदल गया है,
कई सदियों के बदलने में ये ज़माना बदल गया है।
तन्हाई में जो छोड़कर चले गये हैं जाने क्या बात है,
बदलते ज़माने में ये न सोचना की ये दीवाना बदल गया है।
वो गुज़रे तो थे उस रास्ते पर जिस रास्ते पर मैं खड़ा था,
न देखा एक बार मुड़कर उसने, सनम संगदिल बड़ा था।
उनके एक दीदार के खातिर मैंने बार बार खुद को मारा,
मगर वो आये नहीं ज़ालिम, कबसे मेरा जनाजः वहीँ पड़ा था।
तेरे कसबे बना सकूं, वो दरख़्त ढूंढता हूँ मैं,
जो गुज़रे तेरे संग, वो वक़्त ढूँढता हूँ मैं।
काश कोई पैमाना होता, जिस में होती इतनी शराब,
न रहते होश में हम, न लगती ये दुनिया खराब ।
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