दर्द से दिल को जब मोहब्बत होने लगे
मयकदों में जाने की तब ज़रुरत होने लगे।
लाख चाहे पर नज़र उससे हठती ही नहीं,
वो छलकती है जब तब क़यामत होने लगे।
दायर-इ-चश्म में वो कभी आते ही नहीं
शब-इ-गम में जाने कब मस्सरत होने लगे।
इब्न-इ-खुद न सही, मैं काफिर ही सही
बुत में बसे खुदा की जब वकालत होने लगे।
हर दर पर उसके, मिले जब रुसवाई तुझे
मयकदों के वजिदों में तब शराफत होने लगे।
मयकदों में जाने की तब ज़रुरत होने लगे।
लाख चाहे पर नज़र उससे हठती ही नहीं,
वो छलकती है जब तब क़यामत होने लगे।
दायर-इ-चश्म में वो कभी आते ही नहीं
शब-इ-गम में जाने कब मस्सरत होने लगे।
इब्न-इ-खुद न सही, मैं काफिर ही सही
बुत में बसे खुदा की जब वकालत होने लगे।
हर दर पर उसके, मिले जब रुसवाई तुझे
मयकदों के वजिदों में तब शराफत होने लगे।
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