My poems
Thursday, July 21, 2011
शायरी - 2107
सोचा इश्क के बाज़ार में दिल का सौदा करने जाए,
पर कम्भक्त दिल के बदले हम गम खरीद लाए
और ये गम की तासीर की हिमाक़त थी जो
फिर गए थे गम बेचने तो हम खुद को ही बेच आए
अब क्या खरीदें, अब क्या बेचें, अब तो न कुछ भाए।
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