Saturday, January 10, 2015

ख़ामोशी का शोर

जिस गली से तुम रोज़ गुज़रते हो
उस गली में ही मैं बसर करता हूँ ।
तुम मुझे देख आँख चुरा लेते हो
मैं चुप रहता हूँ कुछ न कहता हूँ ।

तुम वादे करते हो मुझे अपनाने का।
मेरे दुखों को मुझसे दूर भगाने का।
वो तुम्हारे वादे, मैं याद दिलाता हूँ
अपने चेहरे के तासूर दिखलाता हूँ । 

मेरे भविष्य की तुमने कई बातें करी
बातों ही बातों में कितनी रातें करी।
भविष्य छोड़ो, वर्तमान ही सुधार दो।
हो सके तो कुछ अपनी रातें उधार दो।

आवाज़ तो तुमने भी मुझे लगाई है।
'छोटू' कहकर एक चाय मंगवाई है।
मैं भी तुम्हें एक आवाज़ लगाता हूँ ।
अपनी ख़ामोशी का शोर सुनाता हूँ ।

काश तुम मेरी ख़ामोशी सुन पाते ।
मेरी कैफियत महसूस ही कर जाते।
आँखों से ही थोड़ा दुलार दिखलाते।
एक बार 'छोटू' को छोटा भाई बुलाते ।

शायद ज़िन्दगी मेरी बदल भी जाये ।
अँधेरी रात को मिटाने सवेरा आये।
मुमकिन है जो तुम कोशिश करते।
एक बार मेरी खामोशी सुन सकते ।

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