Thursday, November 17, 2016

ग़ज़ल - 21/08/2016

मेरे जानिब से जो खुदको देखा मैंने 
तुझको देखा जब भी खुदको देखा मैंने।

इक नज़र जो तेरे जमाल से गुज़री मेरी  
मदहोश कर गया जो तुझको देखा मैंने। 

सहर भी अब क्या आफताब लाएगा! 
तेरे ज़िया में रोशन सबको देखा मैंने।

तू शादाब, तू नूर, तू ही है मंज़र मेरा,
तेरे सिवा जहाँ में किसको देखा मैंने?

कब से इक़तज़ाह थी वस्ल-इ-रब की,
तुझको देखा जब भी रबको देखा मैंने।

1 comment:

Muzammil Bari said...

How about.. teri ziya SE roshan sub ko dekha maine. I think SE sounds better here in terms of the meaning of the word Ziya