Saturday, May 12, 2012

शाएरी - 13/05/2012

ये हुसन के दरख्तों पे मुस्कानों के फूल खिले,
दूर खड़े अरमानों को बस मायूसी के शूल मिले।

ये हिजाब, ये दायरों में खिलती नाज़ुक-सी कली,
ये दुनिए लगे वीरानी जो मुझको तेरी जुस्तुजू मिले।

ये नुमाइश के हज़ार रंग, ये अदाओं की जादूगरी,
जो देखूं तुझे हरपल तो इस दिल को कैसे सुकून मिले?

मांगता हूँ खुदा से जो न मिले तू तो क्या मिले,
जीने कि चाह न सही पर मरने का जूनून मिले।

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