Tuesday, February 21, 2012

ग़ज़ल - 21/02/2012

मेरा दिल, मेरा ही रकीब हो गया।
अश्कों में जीना मेरा नसीब हो गया ।

यहाँ घन्हे बादलों का तो है मेला,
मगर दो बूँद ही मेरा हबीब हो गया।

देता है दिल मुझे दर्द के तोहफे,
अब तो ये दर्द ही मेरा हकीम हो गया।

जो दिखता है दरया में चाँद मुझे,
तेरा चेहरा मुझसे कितना करीब हो गया।

फूलों में भी कहाँ कुश्बू बची है,
तू गया तो भंवरा भी यतीम हो गया।

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