Saturday, June 28, 2014

तक़दीर की टोपी

ख्वाइशों के परों से हो बनी,
खुशियों के धागों से हो तनी।
आसमां से हो ज़रा से छोटी,
मिल जाये वो तक़दीर की टोपी।

कुछ रंग भरे हो उजले-उजले,
फूलों के पंखिड़ियों से हो निकले।
हर्ष हो उल्लास हो और हो मुस्कान,
माँ की ममता और पिता का वरदान।
रंजिश की जिसमें गुंजाईश न होती,
मिल जाये वो तक़दीर की टोपी।

काश मिल जाये ऐसी कोई टोपी,
खरीद ही लेते अगर कीमत होती।
लड़ते मरते क्या-क्या न करते,
इसे पाने के लिए कितना तरसते।
पर हकीकत हमें आइना दिखाती
काटों से सजी ग़मों से बुनी जाती।

सुनहरे धागे भी होते पर टूटे हुए।
मोती भी मिल जाते पर फूटे हुए।
हम उसे नहीं, पर वो हमें चलाती
कुछ पल बाद वो छोड़ चली जाती।
उतार फेंको अब ये तक़दीर की टोपी
हमारा नसीब हमारी मेहनत होती।

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