Saturday, June 28, 2014

ग़ज़ल - 29/06/2014

इश्क़ होता है तो इश्क़ ही सज़ा देता है।
ज़िन्दगी जीने का अलग मज़ा देता है।

मरासिम बना रहे हो तो कलेजा रखना,
ये ज़िन्दगी के बाद भी न वफ़ा देता है।

आशना अगर होता मन तो क्या होता,
कौन कहता है कि दुश्मन दगा देता है।

घोले हैं ज़िन्दगी में तेरा नशा कि सुना है
ये काफिरों को भी वाजिद बना देता है।

रंजो-गम की बस्ती का मैं बाशिंदा सही
गार में रहना भी कुछ तो सीखा देता है।

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