Saturday, March 29, 2014

यादों की झोली

यादों के गुच्छे, झोली में भरे,
आया हूँ मैं समंदर में बहाने।

एक नज़र है इसमें,
जिससे पहली बार मैंने तुम्हे देखा था।
कभी बालों को ठीक करती,
तो कभी दुपट्टे को।
हल्की-सी शिकन माथे पे
एक झलक जब तुमने मुझे देखा था।
वो झलक भी इस झोली में रख छोड़ा है।

एक रुमाल भी है इसमें,
जिसमें तुम्हारे नाम के दो अक्षर लिखे हैं।
एक दिन तुम इसे 
अपनी मेज़ पे भूल गयी थी।  
एक दीवाने ने उसे
अपना समझ झट से उठा लिया था।
वो दीवाने को भी झोली में रख छोड़ा है।

एक तस्वीर भी है इसमें,
जो तुमने मेरे साथ
बड़ी झिझक के साथ खिंचाई थी।
बहुत बुलाने के बाद
तुम मेरी महफ़िल में आयी थी।
तुम जानती थी कि मैं तुम्हे बहुत चाहता हूँ।
आज वो चाहत भी झोली में रख छोड़ा है।

और भी कई चीज़े है इसमें,
कुछ बातें है इसमें,
कुछ मुलाकातें है इसमें,
एक मौसम भी है इसमें,
और कई पल भी है इसमें,
और ये सब तुम्हे मुझसे कभी जुदा नहीं कर सकते।
इसलिए ये सब भी झोली में रख छोड़ा है।

यादों के गुच्छे, झोली में भरे,
आया हूँ मैं समंदर में बहाने।

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