वो तालाब के सामने, मस्जिद के पास,
हाँ, मेरे यहाँ भी मेला लगा करता था।
वो खिलोनों की दुकानें, वो रसीले पकवान,
वो बड़े-बड़े झूले में बेठ हम छूते आसमान,
शाम से ही जहाँ हंगामा मचा करता था।
हाँ, मेरे यहाँ भी मेला लगा करता था।
वो दोस्तों के गले में हाथ डालकर घूमना,
वो लड़ते-झगड़ते मस्तियों को चूमना,
जहाँ राजा होने का गुमान उमड़ता था।
हाँ, मेरे यहाँ भी मेला लगा करता था।
लोगों के आँखों में जहाँ सोने की दमक,
खिलते चेहरों में नए कपड़ो की चमक,
जहाँ जाने के लिए माँ से लड़ा करता था।
हाँ, मेरे यहाँ भी मेला लगा करता था।
कभी जहाँ बाबूजी के संग जाया करता था।
खिलोने खरीद गोल-गप्पे खाया करता था।
उनके कंधो से सारा जहां दिखाई पड़ता था।
हाँ, मेरे यहाँ भी मेला लगा करता था।
पर अब तालाब को सरकार ने भर दिया है।
मस्जिद के पास भी इमारतों को जड़ दिया है।
जहाँ सडकों पर अब बस मोटरें चला करती है।
हर हलचल में बस खामोशी झलका करती है।
मेलों में जाना लोगों ने अब छोड़ दिया है।
बचपन के खिलोनों को किसने तोड़ दिया है?
वो तालाब ढूँढता हूँ जो गवाह बनता था।
हाँ, मेरे यहाँ भी मेला लगा करता था।
हाँ, मेरे यहाँ भी मेला लगा करता था।
वो खिलोनों की दुकानें, वो रसीले पकवान,
वो बड़े-बड़े झूले में बेठ हम छूते आसमान,
शाम से ही जहाँ हंगामा मचा करता था।
हाँ, मेरे यहाँ भी मेला लगा करता था।
वो दोस्तों के गले में हाथ डालकर घूमना,
वो लड़ते-झगड़ते मस्तियों को चूमना,
जहाँ राजा होने का गुमान उमड़ता था।
हाँ, मेरे यहाँ भी मेला लगा करता था।
लोगों के आँखों में जहाँ सोने की दमक,
खिलते चेहरों में नए कपड़ो की चमक,
जहाँ जाने के लिए माँ से लड़ा करता था।
हाँ, मेरे यहाँ भी मेला लगा करता था।
कभी जहाँ बाबूजी के संग जाया करता था।
खिलोने खरीद गोल-गप्पे खाया करता था।
उनके कंधो से सारा जहां दिखाई पड़ता था।
हाँ, मेरे यहाँ भी मेला लगा करता था।
पर अब तालाब को सरकार ने भर दिया है।
मस्जिद के पास भी इमारतों को जड़ दिया है।
जहाँ सडकों पर अब बस मोटरें चला करती है।
हर हलचल में बस खामोशी झलका करती है।
मेलों में जाना लोगों ने अब छोड़ दिया है।
बचपन के खिलोनों को किसने तोड़ दिया है?
वो तालाब ढूँढता हूँ जो गवाह बनता था।
हाँ, मेरे यहाँ भी मेला लगा करता था।
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