धुंधली यादों की तस्वीर ढूँढ़ते हैं।
बंद दरवाज़ों की ज़ंजीर ढूँढ़ते हैं।
हर ख्वाब के टूटने के बाद वो,
चंद लकीरों में तकदीर ढूंढते हैं।
जल चुके हैं धर्म के नाम पर,
कहीं तो मिले वो कबीर ढूँढ़ते हैं।
तेरे छत से मेरा छत छोटा सही,
मेरे दिल से बड़ा अमीर ढूँढ़ते हैं।
मेरे खुदा पे शक तो मुझे भी है,
तभी राम से पहले रहीम ढूंढते हैं।
'लक्ष्य' तेरे नाम को खुद सिद्ध कर,
जीने का मकसद फ़कीर ढूंढते हैं।
बंद दरवाज़ों की ज़ंजीर ढूँढ़ते हैं।
हर ख्वाब के टूटने के बाद वो,
चंद लकीरों में तकदीर ढूंढते हैं।
जल चुके हैं धर्म के नाम पर,
कहीं तो मिले वो कबीर ढूँढ़ते हैं।
तेरे छत से मेरा छत छोटा सही,
मेरे दिल से बड़ा अमीर ढूँढ़ते हैं।
मेरे खुदा पे शक तो मुझे भी है,
तभी राम से पहले रहीम ढूंढते हैं।
'लक्ष्य' तेरे नाम को खुद सिद्ध कर,
जीने का मकसद फ़कीर ढूंढते हैं।
2 comments:
बहुत बढ़िया ग़ज़ल....
उम्दा शेर..
अनु
bahut bahut shukria!
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